जो दिल कभी मेरा था नहीं उसे क्यों ले आया मैं
जो दिल कभी बना नहीं, उसपे क्यों हक़ जाता आया मैं
राहों पर तो उसने गुलाब ये बिछाए फिर क्यों उसे लांघ आया मैं
कलियों के तो उसने बाघ थे लगाये
फिर क्यों उसे अपने साथ न लाया मैं
जज़्बात मेरे रह गए और एक आरज़ू
पर क्यों अपना दिल छोड़ आया मैं
कह नहीं सकता मैं, अपने मन की तड़प
फिर क्यों अपनी नज़रे बिछा आया मैं
No comments:
Post a Comment