Tuesday, August 10, 2010

समर्पण


गुरु से ऐसा मिलन हुआ
गमो का कहीं न ठिकाना है
आज पंख ऐसे खुले हैं
जैसे हवा में उड़ जाना है
धरती का हर कण कह रहा
मन का फूल जो मुस्कुराना है
गिरना , बहकना छूट गया
आज उनके तरंगो में संभल जाना है
गरजते हुए सावन को देखो
चिल चिलाती चिड़ियो को देखो
आँखों में दिव्या प्रेम लिए
उनकी कृपा में मस्त हो जाना है
जिनकी छाया ही मधुबन
और आँखों में विशाल सागर है
ऐसे श्री श्री को शत शत नमन
समर्पण जिनके चरणों में कर जाना है

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