Wednesday, August 11, 2010

ज़िन्दगी से रुस्वा.....


मेरे शब्द जिसमे खो गए , उस शोर से बचना चाहता हूँ
मेरे अरमान जिसमे सुलग गए, उस आग से बचना चाहता हूँ
मुझे मेरे ही सपनो ने मौन कर दिया,
मुझे मेरे ही गीतों ने वीरान कर दिया
सोचता हूँ कभी कभी आखिर जीवन में करना क्या है
अगर ज़िन्दगी जीनी है इसी तरह तो मरना क्या है
तन्हा रहना तो मेरा शौंक नहीं ,
पर सुनसान राहों में चलने का भी गम नहीं
न जाने कब वो मोड़ आएगा
जहाँ ये हाथ केवल दो नहीं रहेंगे
वीरान सड़के गुलशन बनेंगी
और शोक भी उत्सव बनेंगे
कहता हूँ मैं अपने दिल से मायूसी ही जीवन नहीं
हसना रोना तुझिको है खुशियों का मेला ये जग नहीं

1 comment:

  1. I like this...
    this is one of the beautiful...as I found this attached to my life somewhere.....

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